– तिर्थराज देवि निकुंभला राजलक्ष्मी मंदिर जय शक्ति आश्रम निकुम में चैत्र नवारात्रि पर हो रहा भव्य आयोजन, आहुति देने दूर-दूर से आ रहे श्रद्धालु
दुर्ग। चैत्र नवरात्रि के पावन अवसर पर तीर्थराज देवि निकुंभला राजलक्ष्मी मंदिर जय शक्ति आश्रम निकुम संत श्री माताजी के निवास में 22 से 30 मार्च तक गायत्री-दुर्गा आरधना का आयोजन किया जा रहा है। इस भव्य आयोजन में शामिल होने दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से आए भक्तगण महायज्ञ में आहुति दे इसका पुण्य फल प्राप्त कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि तीर्थराज देवि निकुंभला राजलक्ष्मी मंदिर जय शक्ति आश्रम निकुम संत श्री माताजी के निवास में अनवरत चलने वाले धार्मिक व अध्यात्मिक आयोजनों की श्रृंखला में चैत्र नवरात्रि पर नौ दिवसीय गायत्री-दुर्गा आराधना का आयोजन किया जा रहा है। इसके अंतर्गत आश्रम परिसर में यज्ञस्थल बनाया गया है जहां पर मां दुर्गा और भगवान गणेश की मनोरम प्रतिमा स्थापित की गई है। यहां पर प्रतिदिन सुबह 11 बजे से 1 बजे तक संतश्री माताजी के श्रीमुख से दो घंटे तक मंत्रोच्चारण किया जाता है। प्रत्येक मंत्रोच्चारण पर उपस्थित श्रद्धालुओं द्वारा आहुति देने का क्रम जारी रहता है। जिसके पश्चात माता की आरती की जाती है।
आश्रम प्रमुख संतश्री माताजी ने बताया कि गायत्री-दुर्गा आराधना का वर्णन महर्षि मारकण्डेय द्वारा रचित दुर्गा सप्तशती में मिलता है। इस आराधना से सर्वमनोकामना पूर्ण होती है। आराधना में शामिल हो कर महायज्ञ में आहुति डालने से रोग, शत्रु व कलह का नाश होता है और यश, किर्ती व समृद्धि की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि गायत्री-दुर्गा आराधना के महत्व और पुण्य प्रताप के बारे में हमारे वेद-पुराणों में भी बताया गया है।
कलयुग का पहला राजसूय महायज्ञ निकुम में :
संतश्री माताजी ने कहा कि त्रेतायुग में भगवान राम ने अश्वमेध महायज्ञ किया था। द्वापरयुग में भगवान कृष्ण की प्रेरणा से युधिष्ठिर ने राजसूय महायज्ञ किया था। अभी कलयुग चल रहा और कलयुग का संभवत: पहला राजसूय महायज्ञ वर्ष 2025 में उनके द्वारा निकुम में कराया जाएगा। उन्होंने बताया कि राजसूय महायज्ञ से पहले विभिन्न महायज्ञ संपन्न कराए जाते हैं, इसी श्रृंखला में उनके द्वारा आश्रम में 99 दिवसीय अभिजीत महायज्ञ और 26 दिवसीय समुद्र मंथन अमृत कलश महायज्ञ कराया गया और अब 9 दिवसीय गायत्री-दुर्गा आराधना महायज्ञ कराया जा रहा है। इसका पुण्य फल आराधना में शमिल होने वालों का तो मिलता ही है, साथ ही पूरा प्रदेश लाभांवित होता है।
तांत्रिक नहीं सात्विक हैं मां निकुंभला :
संतश्री माताजी ने कहा कि रावण, कुम्भकरण, विभिषण और मेघनाथ सभी मां निकुंभला के उपासक थे। रावण प्रचंड विद्वान था लेकिन उसकी एक गलती ने उसके कुल का विनाश कर दिया। इस बात को सभी को समझना चाहिए और सोच-समझ कर कर्म करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि मां निकुंभला सात्विक हैं, तांत्रित नहीं। मूलमंत्र ‘ऐं हीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ है।
सभी के सहयोग से हो पाते हैं आयोजन:
संतश्री माताजी ने कहा उनसे असंख्य लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से जुड़े हुए हैं। जिनके सहयोग से ही आश्रम में अनवरत धार्मिक व अध्यात्मिक आयोजन संपन्न हो पाते हैं। इसी प्रकार एक दिन तीर्थराज देवि निकुंभला मंदिर और नगरी निर्माण भी अवश्य होगा। इसे कोई नहीं रोक सकता। उन्हेंने बताया कि इसकी अनुमानित लागत एक लाख एक हजार करोड़ रुपए है और 4 एकड़ मंदिर, 7 एकड़ परकोटा व 25 एकड़ परिसर भूमि की आवश्यक्ता है। इसी उद्देश्य को लेकर वे लगातार आयोजन करते आ रहे हैं। क्रमश: