गांधी और राम: विनोद साव

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गांधी और राम

– विनोद साव

कभी एक पार्टी जब अपने चुनाव प्रचार का ‘चक्र’ चलाती थी, उस समय यह चक्र उनका चुनाव चिन्ह हुआ करता था – तब उनके चुनाव वाहन के ऊपर रखे लाऊड-स्पीकर में एक गीत गूंजा करता था ‘अरे ओ बापू के हत्यारों तुम ये काम न करो.. राम का नाम बदनाम ना करो.. अरे ओ गाँधी के..’

गांधी जी ने अपनी अंतिम साँस में ‘हे राम’ कहा था – इससे यह भी लगा कि अब इस देश का भगवान मालिक है और वे देशवासियों को रामभरोसे छोड़कर चलते बने. आगे चलकर देश की बागडोर राजीव गांधी के हाथ में आई. राजीव यानि राम का दूसरा नाम जिनकी चितवन ह्रदय में छाप छोडती थी. इस मामले में उनकी आंखें सचमुच राजीव लोचन थीं. राम का नाम लेने वाले गांधी गोली के शिकार हुए तो रामनाम धारी राजीव बारूदी विस्फोट में उड़ा दिए गए.

सबके अपने अपने राम हैं – राम, वाल्मीकि के महाकाव्य के नायक हुए. तुलसी के राम मर्यादा पुरुषोत्तम हुए. गाँधी के राम आदर्श के प्रतिमान हुए जिन्हें लेकर रामराज्य की कल्पना भी उन्होंने की थी. फिर राजनैतिक दलों के अपने अपने राम – कोई दक्षिणमार्गी तो कोई वाममार्गी और मध्यमार्गी. किसी ने गाँधी की हत्या की तो किसी ने उनके रामराज्य की परिकल्पना की. हत्या के बाद उसे मुद्दा बनाना हमारे चुनाव कार्यक्रमों की विशेषता बन गई है. गाँधी और राम दोनों लम्बे समय से इस देश में चुनावी मुद्दे बन गए हैं. दोनों की याद हमारे नेताओं को तब आती है जब चुनाव सिर पर सवार होता है तब वे गाँधी और राम नाम की माला जपने लग जाते हैं. वे गाँधी की धुन और राम का राग अलापते हैं. इस राम दरबार में वे भी शामिल हो जाते हैं जिन्होंने गांधी की हत्या की और वे भी जिन्होंने उनके सिद्धांतों को मारा.

रामचन्द्रजी उत्तर से दक्षिण यानि अयोध्या से रामेश्वरम गए थे. जितना प्रभाव उनका उत्तर में उतना ही दक्षिण में.. ये अलग बात है उनके भक्तन कभी कभी चुनाव में ऐसा मतदान करते हैं कि चुनाव परिणाम भी उतर दक्षिण निकलते हैं. उत्तर में जो दल झंडा गाड़ता है वह दक्षिण में साफ़ हो जाता है और दक्षिण में जो परचम लह्तारा है वह उत्तर में हवा हो जाता है. यह सब राम जी की कृपा है ‘कोऊ नृप होई हमें का हानी.’

दक्षिण में सर्वाधिक लोकप्रिय मुख्यमंत्री रामनाम धारी होते हैं जैसे रामचंद्रन और रामाराव हुए. लेकिन इनके भी जीते-जी वहां रामराज नहीं आ सका बल्कि रामजी ने जिन्हें लंका में मार गिराया था वहीँ से आकर लिट्टे वालों ने इनके राज्य में घुसपैठ कर दी. इतना कर ये मुख्यमंत्री रामधाम को चले गए तब उनके भक्तों ने मिलकर एक सरकार बनाई. उस सरकार ने चेन्नई में चुलाई मेदु हाई रोड पर स्थित महात्मा गाँधी की आदमकद प्रतिमा को हटाकर एम्.जी.रामचंद्रन की प्रतिमा लगवा दी. रामचंद्रन के भक्तों ने समझा होगा कि गाँधी जी भी आखिर राम के ही भक्त थे तब फिर उन्हें हटाकर उनके इष्टदेव की मूर्ति लगवा देने से गाँधी जी की आत्मा प्रसन्न हो उठेगी लेकिन वहां रामचंद्रन की मूर्ति लग जाने से तूफान आ गया और उनके शिष्य समेत उनकी पार्टी ही साफ हो गई. तब उन्हें रामचंद्र और रामचंद्रन में अन्तर मालूम हुआ होगा.

गाँधी और राम को मुद्दा बनाने वाले लोग ये जान लें कि गाँधी जी ने कहा था – ‘मेरे राम वे नहीं हैं जिन्होंने बाली-सुग्रीव के युद्ध में धोखा दिया था या जिन्होंने माया-मृग के पीछे दौड लगाई थी. मेरे राम तो वे हैं जिन्होंने अयोध्या की गद्दी ठुकराई, पिता को दिए वचन का पालन कर बनवास जाना स्वीकार किया, जिन्होंने भरत के आग्रह पर भी राज्य स्वीकार नहीं किया, जिन्होंने एक धोबी के शब्दों को भी महत्व दिया था. हमें यह समझ लेना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता.. हमें हमेशा गुणग्राही बनना चाहिए.’

गांधी ने हा.. राम कहते हुए अपने प्राण तजे थे.


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