संघर्ष के दिन भिलाई में गुजारे थे बप्पी दा ने

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भिलाई। महीने भर की तकलीफ के बाद अब संगीतकार बप्पी लाहिरी भी नहीं रहे। मंगलवार 15 फरवरी 2022 मंगलवार की रात उन्होंने मुंबई के एक अस्पताल में 69 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। 80-90 का दौर बप्पी दा के ऊर्जा से भरपूर संगीत का दौर था। तब बप्पी दा एक तरफ डिस्को की धूम मचा रहे थे तो दूसरी तरफ दक्षिण की फिल्मों की खास शैली का संगीत देकर पूरे देश का मनोरंजन कर रहे थे। लेकिन एक बप्पी लाहिरी वह भी थे, जो बेहद गंभीर किस्म का भी संगीत दे रहे थे। बप्पी दा के संगीत को इन तीन खांचें में महसूस किया जा सकता है। यही उनके संगीत की पहचान भी थी। यकीन कीजिए कि जिसने “आई एम ए डिस्को डांसर” रचा, उसी ने “सैंय्या बिना घर सूना” या फिर “चंदा देखे चंदा” भी रचा। खैर, बप्पी दा एनर्जी के पर्याय थे। उनके लिए हल्के-फुल्के संगीत के अलावा शास्त्रीयता का पुट लिए गंभीर संगीत का सृजन करना सहज था। अब जब बप्पी दा हमारे बीच नहीं रहे, संगितप्रेमियों के अलावा फिल्मी गीतों के शौकिन लोग भी उनके और मिथुन था की केमिस्ट्री को याद कर रहे रहे हैं।

17 साल की उम्र में गवा रहे थे लता-मन्ना डे और किशोर को

बप्पी दा जिस दौर में दक्षिण में व्यस्त थे और उनकी इंदीवर के साथ जोड़ी जो गीत-संगीत रच रही थी, तब उसकी खूब आलोचना हुई और उन पर फूहड़ता और नकल के आरोप लगे। इसके बावजूद “जो चल गया वो चल गया” वाला मामला था। बप्पी दा चूंकि संगीत के समृद्ध परिवार से थे। इसलिए बचपन से ही उनके संस्कार में ही संगीत बसा था। महज 17 साल की उम्र में उन्होंंने बांग्ला फिल्म “दादू” में संगीत दिया। जिसमें लता मंगेशकर,मन्ना डे और किशोर कुमार जैसे दिग्गजों ने पार्श्वगायन किया। बाद में बप्पी दा ने मुंबई का रुख किया और फिर जो इतिहास बना वह दुनिया के सामने है।

शिखर के दौर का संगीत ही लोकप्रिय रहा

तमाम इतिहास रचते हुए अपने करियर के शिखर के दौर में बप्पी लाहिरी ने फिल्म संगीत का जो माधुर्य रचा वह बाद के दौर में कायम नहीं रह पाया। इसलिए आज भी बप्पी दा का वही संगीत लोकप्रिय है, जो उन्हें अपने शिखर के दौर में रचा था। दशक भर पहले आई फिल्म “द डर्टी पिक्चर” में उसी लोकप्रियता को भुनाने के लिहाज से “उई अम्मा-उई अम्मा” के मीटर पर “ऊ ला ला ऊ ला ला” रच दिया गया। बप्पी दा के माधुर्य से सजी “हिम्मतवाला” की रिमेक बनी तो संगीत जस का तस रख दिया गया।

राजनीति में भी किस्मत आजमाई, लता को पुकारा था मां

‘भिलाई एक मिसाल – फौलादी नेतृत्वकर्ताओं की’ और ‘वोल्गा से शिवनाथ तक ‘ के लेखक, इसके साथ भिलाई से जुड़ी हर एक घटना पर पर पैनी नजर रखने वाले मुहम्मद जाकिर हुसैन ने बताया कि बप्पी दा का अपना संसार था जिन दिनों बप्पी दा का करियर चरम पर था तब अपने संगीत के लिए उन्होंने खूब आलोचनाएं झेली लेकिन उनकी उपस्थिति हमेशा बनी रही। करियर के ढलान के बाद बप्पी दा ने राजनीति का रास्ता भी चुना। जिसमें उन्होंने 2014 में भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा और पश्चिम बंगाल की श्रीरामपुर सीट से किस्मत आजमाई लेकिन तृणमूल कांग्रेस के हाथों उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद उन्होंने राजनीति से तौबा कर ली। हाल के दिनों में बप्पी दा सोशल मीडिया पर सक्रिय थे। वह विभिन्न मुद्दों पर ट्विट किया करते थे। सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर के निधन पर बप्पी दा ने अपनी बचपन की फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए मां के संबोधन के साथ श्रद्धांजलि दी थी। हालांकि तब खुद बप्पी दा भी बेहद बीमार थे। अब उनके जाने की खबर आई है।

बप्पी दा भिलाई पहुंचे, घिरे रहे रिश्तेदारों से

मुहम्मद जाकिर हुसैन बताते हैं कि संगीतकार बप्पी लाहिरी 8 अप्रैल 2013 सोमवार को भिलाई क्लब में अपना शो करने भिलाई स्टील प्लांट के बुलावे पर आए थे। तब शो से ठीक पहले मुझे बप्पी दा से छोटी सी मुलाकात और बात करने का मौका मिला। हालांकि थोड़ा अफरा-तफरी का माहौल था और बप्पी दा की टीम भिलाई निवास से भिलाई क्लब रवाना होने के लिए खड़ी थी। वहीं बप्पी दा के परिजन भी उन्हें घेरे खड़े थे। ऐसे माहौल में बप्पी दा ने छोटे से इंटरव्यू के लिए मुझे वक्त दिया। इस दौरान खुद बप्पी दा ने भिलाई से अपने 40 साल पुराने रिश्तों पर रोशनी डाली। बप्पी दा ने बताया उनके पिता और प्रख्यात संगीतकार अपरेश लाहिरी और शास्त्रीय गायिका मां बंसरी लाहिरी ने 1960-70 के दौर में भिलाई में बंगाली समाज के बीच कई कार्यक्रम दिए थे। उस दौर में मेरे माता-पिता अक्सर भिलाई आते रहते थे। तब मेरी बहन शुक्ला चौधरी (सगी बुआ की बेटी) यहां भिलाई में क्वार्टर नं. 2 डी, स्ट्रीट-46, सेक्टर-8 में रहती थी। मुंबई जाते वक्त अक्सर भिलाई पहुंच जाता था।

ऐसे भिलाई से पहुंचा मुंबई

बप्पी दा बोले-फिर एक दिन ऐसा आया कि मुंबई में कुछ उम्मीदें दिखाई दी। मैनें तुरंत भिलाई से मुंबई की टिकट कटाई और यहां से सीधे जा पहुंचा मुंबई। वहां मुझे एक छोटे बजट की फिल्म “नन्हा शिकारी” मिली। इसके बाद नासिर हुसैन प्रोडक्शन की फिल्म “मदहोश” में बैकग्राउंड म्यूजिक करने का मौका मिला, जिसमें संगीतकार आरडी बर्मन थे। इसके बाद पहली बड़ी सुपरहिट फिल्म नासिर हुसैन की ही “जख्मी” मिली । उसके बाद “चलते-चलते”, “आप की खातिर”, “टूटे खिलौने” और फिर सफल फिल्मों के धूम की कतार लग गई। इस बातचीत के दौरान बप्पी दा के भिलाई में रहने वाले भांजे शांतनु चौधरी ने बताया कि परिवार अब सेक्टर-8 छोड़ सिंधिया नगर में रह रहा है।

अपने संगीत की आलोचना पर बप्पी दा ने कहा था…

संगीत की आलोचना के सवाल पर बप्पी दा ने कहा था-उनके संगीत की कई बार आलोचना हुई लेकिन यही हिट भी रहा। बप्पी दा ने इस तथ्य को गलत बताया कि दक्षिण की फिल्मों के हिंदी संस्करण में संगीत जस का तस रख दिया गया। बप्पी दा बोले-नहीं ऐसा नहीं है जिन दिनों “हिम्मतवाला”, “मवाली”, “मकसद”,”तोहफा” और “पाताल भैरवी” से लेकर “सिंघासन” तक दक्षिण की फिल्मों की कतार लगी हुई थी तो मैनें उनके दक्षिण के संगीत को एक तरफ रख कर अपना संगीत रचा। कहीं भी कॉपी नहीं किया,इन फिल्मों में जितना भी संगीत रचा मेरा मौलिक रहा। उन्होंने बातचीत के दौरान अपने किशोर कुमार मामा को भी याद किया। बप्पी दा ने बताया कि किशोर कुमार उनके रिश्ते के मामा लगते थे और उन्होंने हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया।

तब सिविक सेंटर खूब घूमता था, फिर आउंगा भिलाई

मोहम्मद जाकिर हुसैन ने बताया कि एक प्रतिष्ठित अखबार में उन्हें बप्पी दा का इंटरव्यू लेने का अवसर मिला। बप्पी दा ने बताया कि पहली बांग्ला फिल्म 17 साल की उम्र में तो मिल गई और उसका संगीत भी खूब चला। लेकिन आगे मेरा ख्वाब मुंबई में पैर जमाने का था। वह मेरे संघर्ष की शुरूआत थी। कोलकाता से मुंबई जाते वक्त अक्सर मैं तब भिलाई उतर जाता और बहन के घर 1-2 दिन रह कर जाता था। फिर कुछ 2-3 महीने का एक दौर ऐसा भी रहा जब मुझे 1971 में भिलाई में अपनी बहन के इसी सेक्टर-8 वाले घर में रहना पड़ा। तब यहां रह कर मैं अपना संगीत तैयार करता रहता था और खाली वक्त में भिलाई घूमता था। बप्पी दा कहते हैं-तब मेरा ख्वाब मुंबई फिल्मी दुनिया में पहचान बनाना था और इसी ख्वाब को पूरा करने मैं भिलाई में रहते हुए कोशिश कर रहा था। तब मैं अपने संपर्कों को चिटि्ठयां लिखता था और इंतजार करता था जवाब आने का। तब टेलीफोन तो मुश्किल से लगता था इसलिए घर में भी चिट्‌ठी लिख कर ही अपनी खैर, खैरियत देता रहता था। इस दौरान बप्पी दा ने कहा कि फिल्मी धुनों की नकल के सवाल पर कहा कि दुनिया भर का संगीत हम ही क्या सभी सुनते हैं और यह सब हमारे कानों में रचा-बसा रहता है। इसलिए स्वाभाविक है कि कहीं न कहीं किसी धुन से हम प्रभावित हों लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम नकल कर रहे हैं। मैं तो अक्सर कहता हूं अगर मैनें धुन चोरी की है तो फिर मुझसे पहले के भी संगीतकार भी धुन चोरी के दोषी हैं। बप्पी दा ने भिलाई की यादों को टटोलते हुए कहा-उन दिनों तो भिलाई में काफी कम हरियाली दिखती थी। मैं सिविक सेंटर खूब जाता था। बप्पी दा ने कहा कि एक बार फिर वह 2-3 दिन के लिए भिलाई आकर रहना चाहते हैं, आखिर मेरे स्ट्रगल के दिनों का गवाह भिलाई भी रहा है।


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