रमाकांत का लेखन जनपक्षधरता के लिए प्रेरित करता है

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-कथाकार रमाकांत श्रीवास्तव के विविध पक्षों पर साहित्यकारों ने रखी बात

-शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय दुर्ग में संस्कृति विभाग के सहयोग से ‘एकाग्र रमाकांत श्रीवास्तव’ का आयोजन

डॉ श्रीवास्तव के साहित्य पर विचार व्यक्त करते वरिष्ठ व्यंग्यकार विनोद साव

दुर्ग। छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी और साईंस कालेज दुर्ग हिन्दी विभाग द्वारा वरिष्ठ कथाकार रमाकांत श्रीवास्तव पर केन्द्रित ‘एकाग्र रमाकांत श्रीवास्तव’ का आयोजन किया गया। इस दो दिवसीय साहित्यिक आयोजन के दौरान कथाकार रमाकांत श्रीवास्तव के विविध पक्षों पर वरिष्ठ साहित्यकारों, उनके समकालीन रचनाकारों और सजग पाठकों ने गंभीरता से चर्चा की। उद्घाटन सत्र का संचालन करते हुए साहित्य अकादमी के अध्यक्ष ईष्वर सिंह दोस्त ने कहा कि छत्तीसगढ़ के समकालीन रचनाकारों पर महत्वपूर्ण चर्चा हमारी योजना में है। इसी के तहत हम लगातार रायपुर और छत्तीसगढ़ के विभिन्न शहरों में समकालीन रचनाकारों पर केन्द्रित कार्यक्रम आयोजित कर रहे है। 

          बीज वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ कथाकार शशांक ने कहा कि रमाकांत की कहानियां नयी कहानी के दौर से दिखायी देती है। उनकी कहानियों में हमें विद्रोह की आकांक्षा अथवा स्वप्न दिखायी पड़ता है, वे अपनी कहानियों में लोक गाथाओं से पृष्ठभूमि लेकर कथा रचते है। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. आर.एन. सिंह ने कहा कि हिन्दी दिवस के अवसर आज के समय के महत्वपूर्ण रचनाकार रमाकांत श्रीवास्तव पर आयोजन हमारे लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। उन्होंने युवाओं को वरिष्ठ साहित्यकारों से सांस्कारिक प्रोत्साहन का भी आह्वान किया। उद्घाटन सत्र का आभार ज्ञापन हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. अभिनेष सुराना ने किया। 

          प्रभुनारायण वर्मा ने कहा कि वस्तुतः कथा भूमि की तलाष रमाकांत के रचनात्मक विकास की तलाष है। एक दृष्टि सम्पन्न कथाकार किसी भी विषय को कहानी का कथानक बना सकता है। दुर्ग के वरिष्ठ साहित्यकार महावीर अग्रवाल ने कहा कि आज भी वे रमाकांत श्रीवास्तव से सीखते रहते है। उनकी कथाओं में निम्न मध्यम वर्ग के जीवन संघर्ष और स्वप्न यथार्थ की चिंता मुख्य विषय होते हैं। उनके लेखन पर चर्चा करते हुए मुकेष वर्मा ने कहा कि हम कोई भी घटना देखते है, और भूल जाते है, लेकिन लेखक भूलता नही है। वह उसके मस्तिष्क में संचित हो जाता है, और वही से उसके लिए कथा का बीजारोपण होता है। 

          वरिष्ठ आलोचक नीरज खरे ने कहा कि कहानी की रचना कहानीकार के अनुभव जगत सेे उभरती है। रमाकांत की कहानियों के भीतर एक सर्जनात्मक सौंदर्य है। उनकी कहानियों में एक कठोर व्यंग्य और विनोद भी दिखायी देता है। वरिष्ठ आलोचक जयप्रकाष ने कहा कि कोई भी लेखक अंततः अपने समय को लिखता है। रमाकांत का लेखन अपने समय का लंबा आख्यान है। वे आज भी लगातार अपने समय और समाज को लिख रहे है। उनकी कहानियों में हमें कमजोर और शक्तिषाली वर्ग का संघर्ष दिखायी पड़ता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि रमाकांत के पास जो भाषा है, वह हिन्दी के किसी और कहानीकार के पास नही है।

           इस अवसर पर रमाकांत श्रीवास्तव का कथा संसार के अंतर्गत समकालीनता से साक्षात्कार की कथा विधि पर विनोद साव, आनंद बहादुर, दिनेष भट्ट और कैलाष वनवासी ने भी अपने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किये।

बहुविध अनुभव और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं कथाकार रमाकांत श्रीवास्तव

कार्यक्रम के द्वितीय दिवस रमाकांत श्रीवास्तव का कथा संसार और किषोर मन का यथार्थ पर विषय प्रवर्तन करते हुए उषा आठले ने कहा कि रमाकांत ने संवेदनाओं के साथ मनुष्य और प्रकृति के रिश्ते को महीनता से चित्रात्मक शैली में उभारा है। राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि एक लेखक को हमेषा यह ध्यान रखना चाहिये कि वह क्यों लिख रहा है और किसके लिए लिख रहा है। किशोरों पर केन्द्रित रमाकांत की किताबे लंबी संस्मरणात्मक किताबें है, जिनके माध्यम से लेखक ने सांस्कृतिक बदलाव का जिक्र किया है। राजीव कुमार शुक्ल ने कहा कि सत्तायें हमें क्या पढ़ने को प्रेरित कर रही है यह हमें सोचना चाहिये। जीवन में एक बेहतर मनुष्य बनने की प्रक्रिया बच्चों में किशोर साहित्य से ही मिलती है। 

          जीवन यदु ने कहा कि बच्चों पर लिखने का अर्थ देश को संस्कार देना है। छत्तीसगढ़ी लोक गाथा रमाकांत की अनूठी उपलब्धि है। वरिष्ठ आलोचक सियाराम शर्मा ने कहा कि स्मृति मनुष्य का अविभाज्य हिस्सा है। मनुष्य अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य को साथ साथ जीता है। हम जिन लोगों के साथ जीते है, उनसे प्रेम का, विरोध का और बहस का संबंध होता है। रमाकांत के संस्मरणों में यही उभरता है। वरिष्ठ कवि एवं समीक्षक बसंत त्रिपाठी ने उनके निबंधों पर केन्द्रित वक्तव्य में कहा कि एक लेखक जिस विधा में जो लिख रहा होता है, उस समय वह मूलतः वही होता है। हमें उनके निबंधों मंे अपने समय, समाज के प्रष्नों की आकुल चिंतायें दिखायी देती है। वरिष्ठ रंगकर्मी और पत्रकार राजकुमार सोनी ने कहा कि रमाकांत की बौध्दिकता और संवेदना हमें गहरे तक प्रभावित करती है। उनकी विनोदप्रियता हदय को छूती है। वे कुषल नेतृत्वकर्ता और संगठनकर्ता है। उनका पांच दशकों का गौरवषाली सार्वजनिक जीवन हमें प्रेरित करता है।

          सत्रांत में जय प्रकाश और राजीव कुमार शुक्ल ने रमाकांत श्रीवास्तव से विभिन्न पक्षों पर संवाद किये, जिस पर उन्होंने बेबाकी से अपना पक्ष रखा। आज के आयोजन में छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष ईष्वर सिंह दोस्त सहित दुर्ग, भिलाई, छत्तीसगढ़ एवं देषभर के विभिन्न शहरों, कस्बों से आये साहित्यकार, रचनाकार एवं पाठकगण उपस्थित रहें। आयोजन को सफल बनाने में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. आर.एन. सिंह हिन्दी विभाग से डॉ. बलजीत कौर, डॉ. कृष्णा चटर्जी, प्रो. थानसिंह वर्मा, प्रो. अन्नपूर्णा महतो, डॉ. रजनीष उमरे, डॉ. सरिता मिश्र, डॉ. ओमकुमारी देवांगन, डॉ. लता गोस्वामी, डॉ. शारदा सिंह एवं अन्य विभागों के प्राध्यापकगण, अतिथि व्याख्याता, शोधार्थी, छात्रगण, रासेयो स्वयं सेवक उनके प्रभारी प्रो. जनेन्द्र कुमार दीवान एवं क्रीडा अधिकारी लक्ष्मेन्द्र कुलदीप की सराहनीय भूमिका रही।

 


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