कैंसर पेशेंट पिता के इलाज में ऑटोरिक्शा बिक गई, परिवार आर्थिक संकट से जुझता रहा, फिर भी नहीं मानी हार और सपना पूरा किया

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छत्तीसगढ़ की पहली महिला अग्निवीर हिशा बघेल


छत्तीसगढ़ के प्रथम महिला अग्निवीर हिशा बघेल के देशप्रेम और इच्छाशक्ति के आगे सभी कठिनाईयां झुकीं

दुर्ग। दुर्ग शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित गांव बोरीगरका की बेटी हिशा बघेल छत्तीसगढ़ की पहली महिला अग्निवीर बन गई हैं। उन्होंने चिल्का (ओड़िसा) में भारतीय नौसेना के लिए आयोजित सीनियर सेकेंडरी रिक्रूट ट्रेनिंग 28 मार्च को पूरा कर लिया है और अब जल्दी ही वापस अपने घर लौटने वाली हैं। प्रदेश को गौरवांवित करने वाली इस बेटी की राह इतनी आसानी नहीं थी। 19 वर्ष की इस छोटी से उम्र में उन्हें काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा है। प्रशिक्षण की कठिनाईयों के अलावा उनके निजी जीवन में भी परेशानियां कम नहीं रही हैं। कैंसर मरीज पिता के इलाज में घर का सबकुछ चला गया, यहां तक परिवार के जिविकोपार्जन का इकलौता साधना ऑटोरिक्शा भी पिता को बेचने को पड़ा। यहां तक की ट्रेनिंग के दौरान उनके पिता भी चल बसे। इस सबसे उनका पूरा परिवार बेहद आर्थिक तंगी से गुजरता आ रहा है। इन सभी कठिनाईयों से लड़ते हुए उन्होंने अग्निवीर भर्ती योजना में भाग लिया और आज प्रशिक्षण पूर्ण कर अपने परिवार का सहारा तो बनेंगी ही, साथ ही सेना में शामिल होकर देश की सेवा भी करेंगी।

ट्रेनिंग के दौरान ही पिता चल बसे:

हिशा के बड़े भाई कोमल बघेल ने ‘हितवार्ता न्यूज’ से चर्चा करते हुए बताया कि हिशा घर में सबसे छोटी है। वह शासकीय कॉलेज दुर्ग से बीएससी कर रही थी लेकिन घर की स्थिति को देखते हुए उसने अग्निवीर भर्ती योजना में शामिल होने का निर्णय लिया। रोज कई किलोमीटर दौड़ की प्रैक्टिस करती थी। हिशा में देशप्रेम का जज्बा भी थी, स्कूल व कॉलेज में भी एनसीसी ज्वाइन करने की जिद्द करती थी। पिता के सबसे ज्यादा करीब होने के कारण उसने सबसे से ज्यादा संघर्ष भी किया और पिता के सपनों को पूरा करने अग्निवीर ज्वाइन कर लिया। बदकिस्मति से पिता हिशा के ट्रेनिंग पूर्ण होने से 25 दिन पहले 3 मार्च 2023 को चल बसे। इसकी जानकारी भी हिशा को अब तक नहीं दी गई है। कुछ दिन बाद जब वह घर आएगी तब उसे इस दुख का भी सामना करना पड़ेगा।

तीनों बच्चे होनहार, सरकार से मदद की दरकार:

कोमल बघेल ने ‘बताया कि वे दो बहनों और एक भाई में सबसे बड़े हैं। उनके पिता संतोष बघेल के पास स्वयं की ऑटो रिक्शा थी, जिसे चलाकर वे परिवार का भरण-पोषण करते थे। लेकिन कुछ साल पहले उनके पिता के कैंसर पीड़ित होने का पता चला। पिता के इलाज में घर की सारी संपत्ति चली गई और 2016 में जिविकोपार्जन का साधन ऑटोरिक्शा भी बेचना पड़ गया। पिता ही परिवार के अकेले कमाऊ व्यक्ति थे, इस वजह से परिवार को काफी आर्थक संकट का सामना करना पड़ रहा। कोमल ने जीईसी जगदलपुर से बीटेक किया है और अब गेट की तैयारी कर रहे हैं लेकिन आर्थिक परेशानी के कारण कोचिंग नहीं कर पा रहे हैं। इसी प्रकार उनकी दूसरे नंबर की बहर दीक्षा ने वेटनरी पॉलिटेक्निक शासकीय कॉलेज से की है। वह भी आगे की पढ़ाई नहीं कर पा रही है। कोमल ने कहा अगर सरकार से मदद मिले तो वे लोग भी अपने सपनों का साकार कर सकते हैं।


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