गांधी पर सवाल उठाना आसान, उनकी राह पर चलना मुश्किल: पांडेय

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लेखक व इतिहासकार अशोक कुमार पांडेय अपने विचार व्यक्त करते हुए


सिविल सोसाइटी दुर्ग-भिलाई का आयोजन “गांधी जरूरी क्यों”  

‘उसने गांधी को क्यों मारा’ के लेखक अशोक कुमार पांडेय का कलामंदिर में उद्बोधन, श्रोताओं के सवालों के भी दिए तर्कसंगत जवाब

कार्यक्रम में उपस्थित श्रोतागण

भिलाई। आज के दौर में भी महात्मा गांधी पर आरोप लगाना आसान है लेकिन महात्मा गांधी से हमारे बहुधार्मिक और बहुजातीय समाज में शांति के लिए खड़े होना सीखना बेहद मुश्किल है। उनकी गलतियां ढूंढने का प्रयास तो आसान है लेकिन देश व मानवकल्याण के लिए उनके द्वारा अपनाए गए मार्ग पर चलना बेहद कठिन है। उक्त बातें प्रख्यात लेखक व इतिहासकार अशोक कुमार पांडेय ने 19 मार्च की शाम महात्मा गांधी कला मंदिर में आयोजि वैचारिक सत्र में कही। सिविल सोसायटी दुर्ग-भिलाई द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘गांधी जरुरी क्यों’ में बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित अशोक कुमार पांडेय ने कहा कि अगर इस देश में नफरत की आंधी, अलगाव की बातें ऐसे ही चलते रहीं तो हमारे देश की बरबादी के लिए वो सब जिम्मेदार होंगे जिन्होंने गांधी के बजाए गांधी की हत्या में लिप्त विचारधारा का रास्ता अपनाया।

पांडेय ने कहा कि गांधी ने अपनी विचारधारा को लेकर किताब नहीं लिखी। गांधी अपनी विचारधारा को लेकर ज्ञान नहीं देते थे। गांधी की विचारधारा किसी लाइब्रेरी में बैठकर सोचते हुए नहीं बनीं थी बल्कि जनता के साथ अपने समय के सवालों से जूझते हुए बनीं थी।  इस विचारधारा का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु अहिंसा है, जिस पर उन्होंने आखिरी सांस तक कभी समझौता नहीं किया।

पांडेय ने एक उदाहरण देते हुए बताया कि एक दलित दंपति उनके  आश्रम में रहने आई तो गांधी ने उनका स्वागत किया। इससे आश्रम में खलबली मची और खुद कस्तूर बा ने कहा कि इन्हें मेरे चौके से दूर रखें। इस पर गांधी ने कस्तूर बा से कहा कि वह चाहें तो चले जाएं लेकिन दोनों दलित यहीं रहेंगे। अंतत: कस्तूर बा को समझौता करना पड़ा। यह महात्मा गांधी का पहला सत्याग्रह था। जो उनके घर से शुरू हुआ था।

अशोक कुमार पांडेय ने कहा कि आज जिस तरह के समय में हम जी रहे हैं, उसमें सोशल मीडिया और मुख्य धारा के मीडिया का बड़ा हिस्सा क्यों चीख-चीख कर कह रहा है कि गांधी तो अब कम से कम जरूरी नही है? इस पर हमें सोचने की जरूरत है।  आखिर आजादी के 70 साल बाद या जिन विचारों ने गांधी की हत्या की उन्हे क्यों गांधी क्यों याद आने लगे?

पांडेय ने महात्मा गांधी के अफ्रीका के सत्याग्रह से लेकर आजादी के दौर के विभिन्न उदाहरणों से बताया कि आज के दौर में देश में लोकतंत्र को बचाए रखने गांधी क्यों जरूरी है।

इसके पहले आयोजन स्थल पर महात्मा गांधी की प्रतिमा पर लेखक अशोक कुमार पांडेय ने सूत की माल अर्पण की। आयोजन में सिविल सोसाइटी दुर्ग-भिलाई के अध्यक्ष विश्नरतन सिन्हा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सिविल सोसाइटी के गठन का उद्देश्य और आयोजन पर रोशनी डाली। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कल्याण महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. आर पी अग्रवाल ने कहा कि लेखक अशोक कुमार पांडेय ने बहुत ही स्पष्ट तरीके से अपनी बातों को हमारे समक्ष रखा है। आज जबकि हर तरफ नैतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है, ऐसे में गांधी और भी अपरिहार्य हो गया है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के विचार हमेशा प्रासंगिक और शाश्वत रहेंगे।

समूचे आयोजन में बापू के प्रिय भजनों की प्रस्तुति डॉ. मणिमेखला शुक्ला एवं उनके समूह ने दी। इस दौरान अभिजीत मुखर्जी अतुल पांडे, इशिका जायसवाल, दीक्षा वैष्णव , डा मणिमेखला, गोपी साहू, टीकम साहू और सतीश सिन्हा   ने  वैष्णव जन तो तेने कहिए और अल्लाह तेरो नाम-ईश्वर तेरो नाम सहित अन्य भजनों की शानदार संगीतमय प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन लवकुश सिंगरौल ने किया और धन्यवाद ज्ञापन अवनीश शुक्ला ने किया। इस अवसर पर महापौर नीरज पाल, पूर्व राज्यमंत्री बदरुद्दीन कुरैशी, मुख्यमंत्री कार्यालय में पदस्थ विशेष कर्त्तव्यस्थ अधिकारी मनीष बंछोर, डॉ. एसके अग्रवाल, राजकुमार गुप्ता, डॉ. रामकांत दानी, मेहरबान सिंह, प्रवीण गोस्वामी, हाजी एमएच सिद्दीकी, शम्श परवेज, आसिम बेग, के ज्योति, फैजान खान, मनीष बड़बंधा, यशराज यादव, सृष्टि दुबे, मिर्जा परवेज, इब्राहीम खान और आशीष दास सहित अन्य लोगों की सहभागिता रही।   

गांधी के राम होर्डिंग में नहीं दिल में बसते हैं:

आयोजन में प्रश्नकाल के दौरान दर्शकों के बीच से कई सवाल आए। जिनका जवाब लेखक अशोक कुमार पांडेय ने दिया। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी से बड़ा धार्मिक व्यक्ति उस दौर में कोई दूसरा नहीं था। महात्मा गांधी की सुबह-शाम आराधना से शुरु होती थी लेकिन उन्हें किसी मंदिर में कर्मकांड करते या मस्जिद में टोपी लगा कर बैठने की जरूरत नहीं पड़ी। उन्हें दिखावे की कभी जरुरत नहीं पड़ी। उन्होंने कहा कि गांधी के राम होर्डिंग में नहीं दिल में रहते हैं।

ब्रम्हचर्य के प्रयोग पर इतना बवाल क्यूं?

गांधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग को लेकर सवाल पर उन्होंने कहा कि यह तत्कालीन दौर से लेकर आज तक हमको पता चली क्योंकि खुद इस बारे में गांधी लिख कर गए हैं। अगर मन में पाप होता तो गांधी इसे लेकर सार्वजनिक तौर पर बात नहीं करते। वैसे भी हमें यह सोचना चाहिए कि गांधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग से देश को क्या नफा-नुकसान हो गया..? भगत सिंह की फांसी के संदर्भ में पूछे गए सवाल पर अशोक कुमार पांडेय ने कहा कि खुद भगत सिंह ने अपने पिता को उनकी सजा माफ करवाने की कोशिश करने पर एक कड़ा पत्र लिखा था और महात्मा गांधी ने तो फांसी के दिन तक वायसरॉय को पत्र लिखा कि सजा कम कर दी जाए। उन्होंने कहा कि सवाल उन लोगों पर होना चाहिए,जिनका संगठन 1925 में बन चुका था। उन्होंने भगत सिंह की फांसी रुकवाने क्या पहल की? भगत सिंह की शहादत के बाद तो नेहरू, सुभाष से लेकर तमाम कांग्रेसी नेताओं ने शोक व्यक्त किया लेकिन दक्षिणपंथी खेमे से एक नाम बता दीजिए, जिसने उस वक्त भगत सिंह को श्रद्धांजलि भी दी हो।

गांधी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया ‘करो या मारो’ का नहीं:

एक दर्शक ने प्रश्न किया कि आपने सावरकर पर वार करने गांधी के कंधे पर बंदूक रख कर चलाई है? इस पर अशोक कुमार पांडेय ने कहा कि मैनें गांधी का कंधा इस्तेमाल नहीं किया बल्कि सावरकर पर सीधे अंहिसात्मक तरीके वार किया है किताब लिख कर। वैसे गांधी पर कंधे पर बंदूक रख कर चलाने की हिम्मत किसी में नहीं है, खुद सावरकर में भी नहीं। उन्होंने कहा कि आज अगर महात्मा गांधी होते तो जनता की ताकत से सत्ता को चुनौती देते।  एक दर्शक ने प्रश्न किया कि करो या मरो का नारा हिंसात्मक है और गांधी जी हिंसा के समर्थक थे? इस पर अशोक कुमार पांडेय ने कहा कि महात्मा गांधी अहिंसा के समर्थक थे, इसलिए ‘’करो या मरो’’ का नारा दिया ना कि ‘’करो या मारो का’’। गांधी व अम्बेडकर के संदर्भ में पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि अम्बेडकर की अपनी चिंताए थी गांधी की अपनी चिंताएं थी। हमें इतिहास में मुर्गा लड़ाई से बचना चाहिए।


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