– पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी सृजनपीठ भिलाई का आयोजन
– समकालीन परिदृष्य और हिंदी व्यंग्य की चुनौतियां पर संगोष्ठी
भिलाई। बहुत पुराना कथन है कि ’’जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकाले ’’। मेरा कहना है कि जब तोप मुकाबिल हो तो व्यंग्य लिखें। व्यंग्य का मूल स्वर विरोध ही हमारे समय की हर तरह की विसंगति से लड़ सकता है। व्यंग्य विवशता जन्य हथियार है और इसका प्रयाग एक सैनिक की तरह करना चाहिए। व्यंग्य लेखन हर समय में चुनौतियों से लड़ता रहा है। अपने अस्तित्व को लेकर जन्म से व्यंग्य को स्वयं अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसका जन्म कर्ण जैसा उपेक्षित रहा है । बड़ा भाई था पर उसका सम्मान नहीं मिला, राजा बनाया गया पर मान्यता नहीं मिली। कभी उसे क्षुद्र कहकर साहित्य के पंगत में बैठने नहीं दिया और कभी उसे ब्राम्हण या क्षत्रिय कह उसे दिवास्वप्न दिखाए गए। आज सोशल मीडिया से उत्पन्न विसंगतियां बाजारवाद आदि विसंगतियॉं परसाई युग में नहीं थी, आज अलग तरह की चुनौतियां हैं। यह कबीर बनने का समय है और हम सूरदास बन सखा भाव से भक्ति कर रहे हैं। व्यंग्य लिखा बहुत जा रहा है पर चर्चा नहीं होती। उक्त बातें दिल्ली से पधारे प्रसिद्ध व्यंग्यकार और और व्यंग्य यात्रा पत्रिका के संपादक डॉ प्रेम जनमेजय ने कही। डॉ जनमेजय छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ शासन के तहत पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी सृजनपीठ भिलाई द्वारा भिलाई में व्यंग्यकार लतीफ घोंघी की स्मृति मे आयोजित संगोष्ठी ’’समकालीन परिदृष्य और हिंदी व्यंग्य की चुनौतियॉं’’ में बतौर मुख्यअतिथि शामिल हुए। उन्होने आगे कहा कि बख्शी सृजनपीठ के अध्यक्ष का आभार, कि उन्होंने व्यंग्य को साहित्य की पंगत पर बैठाया और विमर्श का मंच दिया।
आयोजन के आंरभ में अतिथियों का स्वागत बख्शी सृजनपीठ के अध्यक्ष ललित कुमार ने किया।ललित कुमार ने अपने संबोधन में व्यंग्यकारों को जमीन से जुड़कर पूरी ईमानदारी से लिखने का आव्हान किया। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि आज की संगोष्ठी में सार्थक विचार-विमर्श होगा और महत्वपूर्ण परिणाम सामने आएंगे। उन्होंने लतीफ घोंघी को याद करते हुए कहा कि समकालीन सामाजिक परिदृष्य में हिंदी व्यंग्य की चुनौतियों में वृद्वि हुई है।
आयोजन के दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुये चर्चित व्यंग्यकार विनोद साव ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि ’’लतीफ घोंघी हिंदी व्यंग्य के एक खेतिहर श्रमिक थे। उनकी रचनाओं के पात्र भी अपनी रचना के एक जीवंत चरित्र बन जाते थे। हिंदी साहित्य को समृद्व करने वाले वे अनूठे व्यंग्यकार थे जिनके पाठकों का अपार संसार था।
प्रसिद्व व्यंग्यकार गिरीश पंकज रायपुर ने अपने व्याख्यान में कहा कि समकालीन व्यंग्य की त्रासदी कि आज की नई पीढ़ी पुराने व्यंग्यकारों को पढ़ना नहीं चाहती इसलिए वह व्यंग्य की परंपरा को समझ नहीं पा रही है। हम सब पुरानी पीढ़ी को पढ़ा और उनके सृजन का अनुगमन करते हुये लिखने की कोशिश की। व्यंग्य साहित्य शरीर का एक अंग होना चाहिए, जो वर्षों तक तरोतजा रहता है।
आयोजन के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार रवि श्रीवास्तव ने लतीफ घोंघी को याद करते हुए कहा कि वे स्याही से नहीं पसीने से लिखते थे। जिंदगी की जद्दोजहद में जीवन भर लगे रहे। लेकिन धारदार व्यंग्य लिखते रहे। उनके पास संवाद, उनके आसपास के ही होते थे। इसीलिए वे आज भी पठनीय और विश्वसनीय बने हुए हैं। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. स्नेहलता पाठक रायपुर ने कहा कि महिलाऐं देर से पूछी जाती हैं। महिलाओं को सामने रखना चाहिए जिससे व्यंग्य की रचनाएॅं मिलती रहे। लतीफ घोंघी को याद करते हुए कहा कि छ.ग का महासमुंद शहर व्यंग्यकारों के नाम से पहचाना जाता है वहां से कई राष्ट्रीय स्तर के व्यंग्यकार निकले हैं। प्रथम सत्र का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार कुबेर सिंह साहू राजनांदगांव ने किया। कार्यक्रम में राजशेखर चौबे रायपुर, ऋशभ जैन दुर्ग, वीरेन्द्र सरल मगरलोड धमतरी ने आलेख पाठ किया। दूसरे सत्र का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षविद् डॉ. सुधीर शर्मा रायपुर ने किया। आयोजन के अंत में धन्यवाद ज्ञापन प्रदीप भट्टाचार्य ने किया।
आयोजन में कनक तिवारी, मुमताज, प्रदीप वर्मा, गुलबीर सिंह भाटिया, अविनास सिपाहा, टी.एन. कुशवाहा, एल.एन. मार्य, डॉ. नौशाद सिद्वीकी, प्रशांत कानस्कर, विद्या गुप्ता, सरला शर्मा, शुचि भवि, संध्या श्रीवास्तव, निशा साहू, डॉ. संजय दानी, शरद कोकास, कल्याण साहू, ओमप्रकाश जायसवाल, ज्ञानिक राम साहू, मीता दास, रमाशंकर सोनी, सुशील यादव, छगन लाल सोनी, पवन कुमार दिल्लीवार, नासिर अहमद सिंकदर, आर.एन. श्रीवास्तव, विजय कुमार गुप्त सहित दुर्ग-भिलाई रायपुर राजनांदगांव के साहित्यकार उपस्थित थें।